फिर सुबह होगी

रात घनी थी, चाँद नज़र नहीं आ रहा था,
उस पार देखने की कोशिश तो की, पर अँधेरा बहुत था। 
कमज़ोर दिल धड़कने की कोशिश तो कर रहा था,
पर डर शायद जीने की चाहत से ज़्यादा था। 

आखिरकार दिमाग ने दिल पर काबू किया,
डर के आगे बढ़ना सिखाया। 
रात घनी चाहे कितनी भी हो, 
सुबह का इंतज़ार करना सिखाया। 

फिर सूरज निकलेगा, फिर रौशनी होगी,
धुंध छटेगी, नयी कोपलें फूटेंगी। 
उस घबराये दिल की मत सुन, 
बस थोड़ी देर और,फिर सुबह होगी। 

Comments

Popular posts from this blog

Unlove yourself

The Passengers

It was the best of times, it'll be the best of times