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Showing posts from April, 2014

The man we don't know

Dr. Manmohan Singh , the 13th Prime Minister of India, only 2nd after Late Pt. Jawahar Lal Nehru to hold this office twice in succession! Sometimes I wonder what went wrong, what lead to the downfall of this resilient Sardar. The 2004 general elections threw something unexpected. BJP was thrown out of power and Congress led by Sonia Gandhi had managed to turn the BJP's India Shining campaign to its favor. The results were a surprise, exit polls were refuted; politics pandits were nowhere to be seen. However, we did not have a Prime Minister. The idea of Sonia Gandhi as Prime Minister was vehemently opposed partly because of her Italian origins. What then followed has always been a proof of Sonia Gandhi's sharp political acumen. Dr. Manmohan Singh, a lesser known name amongst the Indian households, was nominated by UPA as the Prime Minister. Barely a politician, this man had already proved his mettle as a brilliant economist and bureaucrat. Having served as the Governo

भागती ज़िन्दगी

उस दिन शर्मा जी ज़रा जल्दी में थे। ऑफिस के लिए देर तो हो ही चुकी थी, उस पर से आकाश ने भी स्कूल बस मिस कर दी थी। ये क्या कम था जो उनके जूते भी पता नहीं घर के किस कोने में पड़े हुए थे। सब आकाश की गलती है। मस्ती करते हुए किसी चीज़ का ध्यान नहीं रखेगा । पापा के जूतों की फिर क्या बिसात थी! खैर, काफी ढूंढने के बाद जब जूते मिले तो शर्मा जी मोटर-साइकिल पर आकाश को बिठा कर पहले उसे स्कूल छोड़ने के लिए निकले। कितनी भीड़ हो गयी है शहरों में, शर्मा जी रास्ते में गाड़ियों को देख कर सोचते हैं। जब वो छोटे थे, तब इतने इंसान भी नहीं थे जितनी अब गाड़ियां हैं। अपने ख्यालों में खोये हुए शर्मा जी गाड़ी आगे बढ़ाते जा रहे थे लेकिन आगे जाम देख कर उनकी तंद्रा टूट गयी। पूछने पर पता चलता है कि किसी बुढ़िया को एक कार वाले ने धक्का मार दिया और अब उसके रास्ते पर पड़े होने के कारण ट्रैफिक जाम हो रखा था।  "इस बुढ़िया को भी आज ही एक्सीडेंट कराना था" शर्मा जी गुस्से में बुदबुदाते हैं। १० मिनट बाद एम्बुलेंस आई और बुढ़िया को अस्पताल ले गयी। जैसे-तैसे आकाश को स्कूल छोड़ने के बाद शर्मा जी ऑफिस पहुँचते हैं

कश्मकश

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर; अजीब ही जगह है यह। देश के भिन्न भिन्न इलाक़ों से हर प्रकार के विद्यार्थी सपने लेकर आते हैं यहाँ।  किसी के सपने पूरे होते हैं तो किसी-किसी के अधूरे भी रह जाते हैं। परंतु समस्या तो कुछ और ही है। हम इंसानों की एक आदत होती है; दो बिल्कुल ही अलग व्यक्तित्व के लोगों को एक ही तराज़ू मे तोलने की। हर विश्‍वविद्यालय की तरह यहाँ भी हर विद्यार्थी अलग व्यक्तित्व का मालिक होता है, हर किसी के अलग सपने होते हैं । स्नातक होने के बाद इंजीनियरिंग करने की ठान के बैठ गये इन नादानों में से अधिकांश को अपने जीवन का सही मकसद तो यहाँ आ कर समझ आता है। परिणामस्वरूप, ऐसे विद्यार्थी इस देश की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते। घरवालों की उम्मीदें और टैक्स भरने वाले उन नागिरिकों कि हमेशा मूल्यांकन करती नज़रें बहुतों को हताश कर देती है, बाकी तो नज़रें छुपाकर अपनी ज़िन्दगी जीते रहते हैं। समाचार पत्रों में खबर आती है की आईआई टी कानपुर के ५ छात्रों को मिली १ करोड़ की नौकरी। घर से अरमान की माँ का फ़ोन आता है और वो अपने सपने गिनाना शुरू कर देती हैं। अब तो हर  रिश्तेदार को बस अरमा