जय हो अभिव्यक्ति की आज़ादी!

वो दरवाज़ा आज भी वहीं था,शांत, खामोश, चुप चाप कहीं दूर देखता। काफी समय से खोला नहीं गया था शायद; लेकिन आज भी नया जैसा चमक रहा था। किसी के आने का इंतज़ार था दरवाज़े को।

घर के अंदर बस एक यही सूनी जगह थी। माँ बाप की आँखों का दुलारा कैप्टेन  दिलजीत गिल का कमरा हुआ करता था उस दरवाज़े के पीछे। वही कैप्टेन गिल जो कश्मीर में शहीद हुए थे। तब शायद पता नहीं था की शहादत के बाद जे एन यू  के छात्र संगठन के प्रमुख श्री कन्हैया कुमार द्वारा उनके जैसे फ़ौज़ वालों पर रेप के आरोप लगाये जायेंगे। आखिर अभिव्यक्ति की आज़ादी है। 

कितनी सच्चाई है, उस पर नहीं बोलूंगा, लेकिन जनरलाइज़ेशन पर ज़रूर खफा हूँ। हमारे यहां जनरलाइज़ेशन केवल तब गलत होता है जब स्टैण्डर्ड लिबरल वैल्यूज के खिलाफ हो, वरना भैया सब जायज़ है।

जय हो अभिव्यक्ति की आज़ादी!
जय हो हमारी पॉलिटिक्स!

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