किस्सा चावल का
कहानी पुरानी नहीं है, आज कल ही की बात है | यह कहानी मिसाल है बदलते हुए ज़माने की | भिन्न- भिन्न प्रकार की साग सब्ज़िओं में फ़ैल रहे जातिवाद की निर्ममता को बढ़े आसानी से दर्शाती है ये कहानी | कुछ विद्वानों का तो यह भी मान ना है की यह कहानी आर्य पुत्रों का द्रविड़ समुदाय के ऊपर वर्चस्व ज़माने की दास्ताँ है | यह कहानी है चावल की | भारत के उत्तरी भाग में स्थापित जो समुदाय है, उसके भोजन करने का एक अलग ही अंदाज़ होता है | एक आम दिन में ये लोग जो खाना खाते हैं, उसका विभाजन कुछ इस प्रकार किया जा सकता है : सर्व प्रथम होती है दाल | इसको ब्राह्मण का दर्ज़ा प्राप्त है | गरीबों की पहुँच के बाहर इसकी अलग ही एक शान है | रोटी के साथ बढे करीने से इसको खाया जाता है | बुद्धिजीवियों का मान ना है की यह प्रोटीन का एक अच्छा स्त्रोत है, कुछ अकड़ शायद इस बात की भी है | इसके बाद बारी आती है माँस की | इसको क्षत्रिय का दर्ज़ा प्राप्त है | खेल के मैदान में या युद्ध भूमि पर झंडा फहराने वाले बढ़े फक्र से मांस का सेवन करते हैं | गरीबों के लिए ये यूनिकॉर्न के सामान है, सुना सबने है, पर देखा किसी ने नहीं | भ...