भागती ज़िन्दगी

उस दिन शर्मा जी ज़रा जल्दी में थे। ऑफिस के लिए देर तो हो ही चुकी थी, उस पर से आकाश ने भी स्कूल बस मिस कर दी थी। ये क्या कम था जो उनके जूते भी पता नहीं घर के किस कोने में पड़े हुए थे। सब आकाश की गलती है। मस्ती करते हुए किसी चीज़ का ध्यान नहीं रखेगा । पापा के जूतों की फिर क्या बिसात थी!

खैर, काफी ढूंढने के बाद जब जूते मिले तो शर्मा जी मोटर-साइकिल पर आकाश को बिठा कर पहले उसे स्कूल छोड़ने के लिए निकले। कितनी भीड़ हो गयी है शहरों में, शर्मा जी रास्ते में गाड़ियों को देख कर सोचते हैं। जब वो छोटे थे, तब इतने इंसान भी नहीं थे जितनी अब गाड़ियां हैं। अपने ख्यालों में खोये हुए शर्मा जी गाड़ी आगे बढ़ाते जा रहे थे लेकिन आगे जाम देख कर उनकी तंद्रा टूट गयी। पूछने पर पता चलता है कि किसी बुढ़िया को एक कार वाले ने धक्का मार दिया और अब उसके रास्ते पर पड़े होने के कारण ट्रैफिक जाम हो रखा था। 

"इस बुढ़िया को भी आज ही एक्सीडेंट कराना था" शर्मा जी गुस्से में बुदबुदाते हैं। १० मिनट बाद एम्बुलेंस आई और बुढ़िया को अस्पताल ले गयी। जैसे-तैसे आकाश को स्कूल छोड़ने के बाद शर्मा जी ऑफिस पहुँचते हैं तो अपनी टेबल पर एक पूरी नयी फाइल पाते हैं। अपनी किस्मत को कोसने के बाद काम शुरू होता है, और शाम आते आते थकान से चूर शर्मा जी घर जाने को उतावले ऑफिस से निकलते हैं। 

भीड़ तो अभी भी थी पर शर्मा जी को भी घर जल्दी पहुंचना था, दिन भर के काम के बाद अब बस चैन से सोना थ। अगले मोड़ पर मुड़ ही रहे थे कि पीछे से हॉर्न की आवाज़ आती है। इस से पहले कि वो कुछ समझ पाते,  पीछे आ रही कार से उन्हें धक्का लगता है। खुद को संभाल पाने का मौका ही नहीं मिला।

सर से खून का फव्वारा बह रहा था। सड़क पर लाचार पड़े हुए थे, तभी पीछे से आवाज़ आती है "इस बुड्ढे को भी आज ही एक्सीडेंट कराना था"। 

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