कश्मकश
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर; अजीब ही जगह है यह।
देश के भिन्न भिन्न इलाक़ों से हर प्रकार के विद्यार्थी सपने लेकर आते हैं यहाँ। किसी के सपने पूरे होते हैं तो किसी-किसी के अधूरे भी रह जाते हैं।
परंतु समस्या तो कुछ और ही है।
हम इंसानों की एक आदत होती है; दो बिल्कुल ही अलग व्यक्तित्व के लोगों को एक ही तराज़ू मे तोलने की। हर विश्वविद्यालय की तरह यहाँ भी हर विद्यार्थी अलग व्यक्तित्व का मालिक होता है, हर किसी के अलग सपने होते हैं । स्नातक होने के बाद इंजीनियरिंग करने की ठान के बैठ गये इन नादानों में से अधिकांश को अपने जीवन का सही मकसद तो यहाँ आ कर समझ आता है।
परिणामस्वरूप, ऐसे विद्यार्थी इस देश की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते। घरवालों की उम्मीदें और टैक्स भरने वाले उन नागिरिकों कि हमेशा मूल्यांकन करती नज़रें बहुतों को हताश कर देती है, बाकी तो नज़रें छुपाकर अपनी ज़िन्दगी जीते रहते हैं।
समाचार पत्रों में खबर आती है की आईआई टी कानपुर के ५ छात्रों को मिली १ करोड़ की नौकरी। घर से अरमान की माँ का फ़ोन आता है और वो अपने सपने गिनाना शुरू कर देती हैं। अब तो हर रिश्तेदार को बस अरमान की नौकरी लगने का इंतज़ार है, और इधर अरमान को समझ नहीं आता कि कैसे बताये सबको कि यह नौकरी ८५० छात्रों में से सिर्फ ५ को मिली है। अरमान आईआईटी कानपुर का एक औसत छात्र है। बहुत संभव है की वो एक आम ज़िन्दगी ही जियेगा।वह शायद अरविन्द केज़रीवाल या नारायण मूर्ति नहीं बन पाएगा। वह अरमान बन कर ही खुश है परन्तु अरमान अब लोगों के लिए काफी नहीं है।
कितने ही अरमान हर साल इस वजह से जान दे देते हैं। पर शायद उस की जान उतनी कीमती नहीं कि उसे अरमान बन कर जीने की इज़ाज़त दी जाए।
देश के भिन्न भिन्न इलाक़ों से हर प्रकार के विद्यार्थी सपने लेकर आते हैं यहाँ। किसी के सपने पूरे होते हैं तो किसी-किसी के अधूरे भी रह जाते हैं।
परंतु समस्या तो कुछ और ही है।
हम इंसानों की एक आदत होती है; दो बिल्कुल ही अलग व्यक्तित्व के लोगों को एक ही तराज़ू मे तोलने की। हर विश्वविद्यालय की तरह यहाँ भी हर विद्यार्थी अलग व्यक्तित्व का मालिक होता है, हर किसी के अलग सपने होते हैं । स्नातक होने के बाद इंजीनियरिंग करने की ठान के बैठ गये इन नादानों में से अधिकांश को अपने जीवन का सही मकसद तो यहाँ आ कर समझ आता है।
परिणामस्वरूप, ऐसे विद्यार्थी इस देश की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते। घरवालों की उम्मीदें और टैक्स भरने वाले उन नागिरिकों कि हमेशा मूल्यांकन करती नज़रें बहुतों को हताश कर देती है, बाकी तो नज़रें छुपाकर अपनी ज़िन्दगी जीते रहते हैं।
समाचार पत्रों में खबर आती है की आईआई टी कानपुर के ५ छात्रों को मिली १ करोड़ की नौकरी। घर से अरमान की माँ का फ़ोन आता है और वो अपने सपने गिनाना शुरू कर देती हैं। अब तो हर रिश्तेदार को बस अरमान की नौकरी लगने का इंतज़ार है, और इधर अरमान को समझ नहीं आता कि कैसे बताये सबको कि यह नौकरी ८५० छात्रों में से सिर्फ ५ को मिली है। अरमान आईआईटी कानपुर का एक औसत छात्र है। बहुत संभव है की वो एक आम ज़िन्दगी ही जियेगा।वह शायद अरविन्द केज़रीवाल या नारायण मूर्ति नहीं बन पाएगा। वह अरमान बन कर ही खुश है परन्तु अरमान अब लोगों के लिए काफी नहीं है।
कितने ही अरमान हर साल इस वजह से जान दे देते हैं। पर शायद उस की जान उतनी कीमती नहीं कि उसे अरमान बन कर जीने की इज़ाज़त दी जाए।
Nice one bro !!!
ReplyDeleteBut things r not as much worsre as u think or believe.
Thanks. I write thing from my perspective, the way I see and this is what I realized.
ReplyDeleteStill u write undergraduate,IIT Kanpur with all pride (or shame) !!!
ReplyDeleteNeither with pride, nor with shame. It has invariably become my identity and I would be very happy if I better it.
ReplyDeleteShould work for it rather than simply criticizing here !!!
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